12 खानों में ज़िन्दगी को ढ़लते देखा है:-By Bodhayan Nipun Sharma
12 खानों में ज़िन्दगी को ढ़लते देखा है
मुझे एक वैद्य बताता है,
मैं दुखता रहता हूँ आजकल,
सुलगता रहता है कुछ अंदर ही,
धुएँ का असर मेरे चेहरे पर आंखों के नीचे के काले घेरों में दिखने लगा है,
वो काला घेरा बढ़ रहा है, वो और काला होता जा रहा है, गहराता जा रहा है।
मैंने उससे मर्ज पूछा है और उसने कुछ जांचें बताई है,
मैंने भी खूँ के कुछ कतरे कागज़ पर रख दिये हैं,
उसने खूँ के एक कतरे से ही पूरे जिस्म की खामियां देख ली है,
कुछ गांठें नज़र आई हैं,
उसे कुछ रुकता, कुछ चलता दिखाई देने का इल्म भी है।
मैं सोचता हूँ कि एक कतरा, मेरे ज़िस्म का हाल बता रहा है?
मेरे ज़िस्म की सारी की सारी खामियों को कागज़ की कुछ उठती - गिरती सी में लहरों में ढाल दी है, वो वैद्य उसे पड़ता भी है, मेरी ज़िन्दगीनुमा सी उठती-गिरती धाराओं में वो मेरा दर्द ढूंढ रहा है,
बोझ बताता है सीने में कोई,
धड़कनें धीरे धड़कती है,
रुकने का भी डर बता रहा है, रुकती नहीं पर,
बीच बीच में कोई धड़कन अटक जाती है, कभी कभी सांस रुकने लगती है, कभी कभी आंखों में एक काई नज़र आती है,
मैं बातें भूलने लगा हूँ, वो मुझे अब ज्योतिष का सहारा बताता है, मेरे ज़िस्म की सारी की सारी खामियों को कागज़ की कुछ उठती - गिरती सी में लहरों में ढाल दी है, वो वैद्य उसे पड़ता भी है, मेरी ज़िन्दगीनुमा सी उठती-गिरती धाराओं में वो मेरा दर्द ढूंढ रहा है,
बोझ बताता है सीने में कोई,
धड़कनें धीरे धड़कती है,
रुकने का भी डर बता रहा है, रुकती नहीं पर,
बीच बीच में कोई धड़कन अटक जाती है, कभी कभी सांस रुकने लगती है, कभी कभी आंखों में एक काई नज़र आती है,
मैं बातें भूलने लगा हूँ, वो मुझे अब ज्योतिष का सहारा बताता है, अब मैंने 12 खानों में अपनी ज़िंदगी को ढलते देखा है...बोधायन
Thank you.....
BY Bodhayan Nipun Sharma
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