हमारी रिक्तताएं:-By Dr. Reeta Saxena
हमारी रिक्तताएं
बाँसुरी तू कितनी अलबेली है
कृष्ण के अधरों पर इठलाती है
पर तू हमारी अलबेली सहेली भी है
मान गए तुझको हम,
रिक्तता में भी मानव की
सांसों की सहेली है ।
क्या सुर में सुर मिलाती है
आह्लाद ,विरह, या हो नमन्
खूब मेलजोल निभाती है ।
काश् हमारा जीवन भी बाँसुरी होता
जहाँ सुर में सुर मिलाने वाली
सहेली होती ,पर नहीं
हमारी रिक्तताएं तो बस
अनबन ही निभाती हैं ।।
By Dr. Reeta Saxena
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