है सखी:-Monika
है सखी
हे सखी, कब तक थमी रहोगी ?
सिर झुकाये चलती रहोगी ?
जीवन तुम्हारा है, या उसका,
कब तक,इस संशय में जियोगी ?
नाप सकती हो उम्मीदों के आसमान,
फिर भी पिंजरे में जीवन बिताओगी?
उसके विश्राम के मोह में कब तक,
अपनी नींद के मोल लगाओगी?
उसकी आँखो के ड़र से कब तक,
अपने ना होने का एहसास कराओगी?
उसके ग़ुरूर को, माथे पे सजा तुम
कब तक,अपने ज़ख़्म छिपाओगी?
धन्यवाद❤️❤️❤️.
By Monika
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